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कलियुग की आहट के साथ समुद्र में विलीन हो गई भगवान श्री कृष्ण की द्वारिका

कलियुग की आहट के साथ समुद्र में विलीन हो गई भगवान श्री कृष्ण की द्वारिका

भगवान श्री कृष्ण एक ऐसा व्यक्तित्व जिसकी तुलना संसार के किसी भी जीव के साथ नहीं की जा सकती। भगवान श्री कृष्ण के जीवन में उसकी हर एक लीला में एक ऐसा विरोधाभास दिखता है जो इंसान की समझ से ऊपर है। 

भगवान श्री कृष्ण का जन्म मथुरा में हुआ उनका बचपन गोकुल में बिता और उन्होंने राज द्वारिका में किया। दोस्तों ऐसा कहा जाता है कि हिमालय की चोट पर बसे बद्रीनाथ में भगवान श्रीकृष्ण स्नान करते हैं। गुजरात की द्वारिका नगरी में वस्त्र पहनते हैं। 

पुरी में भोजन करते हैं। और रामेश्वरम में विश्राम करते हैं। ऐसा कहा जाता है कि द्वारिका नगरी को भगवान श्री कृष्ण ने अपने हाथों से बनाया था और उनके नियम ही खुद ने बनाए थे।

दोस्तों आज के इस लेख में हम आपको भगवान श्री कृष्ण की द्वारिका नगरी कैसे और कब समुद्र में समा गई इसके बारे में आज हम बात करेंगे। भगवान श्री कृष्ण की द्वारिका नगरी का इतिहास 5000 साल पुराना है। अनेक शहर मे बहुत द्वार होने के कारण इस नगरी नाम द्वारिका पड़ा। 

दोस्तो द्वारिका नगरी का इतिहास बहुत बड़ा है।दोस्तो ऐसा कहा जाता है कि इस पवित्र नगरी के चारों तरफ बड़ी बड़ी लंबी दीवारे थी। इस दीवार के आसपास कई दरवाजे थे। ऐसा कहा जाता है कि इस दिवारे अभी भी समुद्र में मौजूद है। 

भगवान श्री कृष्ण की नगरी द्वारिका को प्राचीन नगरी में से एक कहा जाता है। द्वारिका नगरी को प्राचीन समय में कुशस्थली के नाम से जाना जाता था। समुद्र किनारे बसी द्वारिका नगरी दिव्य और सौंदर्य से भरपूर द्वारिका नगरी को भगवान श्री कृष्ण ने अपने हाथों से बसाया था। 

उस वक्त कंस के ससुर मगधीपति ने प्रतिशोध की अग्नि में यादव कुल को खत्म करने का संकल्प लिया था। इसी समय यादव कुल पर बार-बार हमले होने लगे। इसी वक्त यादवो पर बार-बार हमले होने के कारण भगवान श्री कृष्ण ने मथुरा नगरी छोड़ने का फैसला किया।

द्वारिका नगरी को समुद्र में विलीन होने की दो घटनाएं हैं। माता गांधारी ने भगवान श्री कृष्ण को दिया हुआ श्राप और ऋषि मुनि द्वारा भगवान श्री कृष्ण के पुत्र शांभ को दिया गया हुआ श्राप। ऐसा कहा जाता है कि महाभारत युद्ध की समाप्ति के बाद युधिष्ठिर का राजतिलक हो रहा था,

तब कौरव की माता गांधारी ने महाभारत युद्ध के लिए भगवान श्री कृष्ण को दोषी ठहराते हुए श्राप दिया था। जैसे कौरवो के वंश का नाश हुआ है ठीक उसी तरह से आपका यदुवंश का सत्यनाश होगा। ओर जब महाभारत का युद्ध चल रहा था इस दौरान भी कई तरह के अपशकुन हो लगे। 

इसी समय महर्षि विश्वामित्र और नारद जी द्वारिका गए। इसी दौरान द्वारिका नगरी के कुछ नव युवकोने उनका मजाक करना सोचा। वे श्रीकृष्ण के पुत्र सांभ को स्त्री वेश में महर्षि विश्वामित्र के पास ले गए। और कहां की यह स्त्री गर्भवती है उसके गर्भ से कौन उत्पन्न होगा।

 महर्षि विश्वामित्र ने अपने ज्ञान से देखा कि युवक हमारा मजाक कर रहे हैं। फिर उसी ने क्रोधित होकर श्राप दिया। ऐसा कहा जाता है कि महर्षि विश्वामित्र के श्राप से यादव का नाश हुआ और द्वारिका नगरी समुद्र में लिन होगई।

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